संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट, 2020 जारी की है। पहली बार यह वर्ष 2014 में जारी की गई थी, तब से प्रत्येक वर्ष यह रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही है।
यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु किये जा रहे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को संदर्भित करती है। इसके लिये रिपोर्ट में अनुकूलन लागत, अनुकूलन वित्त तथा अनुकूलन वित्त-अंतराल जैसी अवधारणाओं को अपनाया जाता है।
'अनुकूलन लागत' में अनुकूलन उपायों की लागत को शामिल किया जाता है, वहीं 'अनुकूलन वित्त' विकासशील देशों के लिये धन प्रवाह को संदर्भित करता है और अनुकूलन लागत तथा अनुकूलन वित्त के बीच का अंतराल 'अनुकूलन वित्त-अंतराल' कहलाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन प्रभावों के अनुकूलन की वार्षिक लागत वर्ष 2050 तक चौगुनी होने का अनुमान है, अर्थात् वर्तमान में यह लागत 70 बिलियन डॉलर है जो वर्ष 2050 में बढ़कर 280-500 बिलियन डॉलर हो सकती है।
हालाँकि विकसित देशों की अनुकूलन लागत अधिक है किंतु इनकी जी.डी.पी. के संदर्भ में विकासशील देशों पर अनुकूलन का अधिक दबाव पड़ा है। विकासशील देश विशेषकर अफ्रीकी तथा एशियाई देश, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कम से कम तैयार हैं, इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे।
इस रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के लगभग तीन-चौथाई देशों द्वारा अनुकूलन योजनाएँ अपनाई गई हैं, परंतु इन योजनाओं का कार्यान्वयन तथा वित्तपोषण आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। साथ ही, कोविड-19 महामारी, बढ़ता वैश्विक तापमान, बाढ़, सूखा, दावानल तथा टिड्डियों का प्रकोप जैसी वैश्विक चुनौतियों ने अनुकूलन को प्रभावित किया है। रिपोर्ट में अनुकूलन हेतु प्राकृतिक समाधानों को अपनाने का सुझाव दिया गया है।