New
New
UP RO/ARO Course (Pre + Mains). View Details
NCERT online Batch. View Details
Prelims Target Batch 2024. View Details

जियो-इंजीनियरिंग (Geo-Engineering)

  • 1st January, 2021
  • जलवायु इंजीनियरिंग या जियो-इंजीनियरिंग (Geoengineering) सामान्यतः ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में किया जाने वाला सुधारात्मक हस्तक्षेप है। यह तकनीक प्रमुख रूप से तीन श्रेणियों; सौर विकिरण प्रबंधन (Solar Radiation Management), कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (Carbon dioxide Removal) और मौसम संशोधन (Weather Modification) के रूप में कार्य करती है।
  • सौर विकिरण प्रबंधन से तात्पर्य सौर विकिरण को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करके ग्रीनहाउस गैसों के कारण उत्पन्न होने वाले ताप प्रभाव को कम करना है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से पृथ्वी के वायुमंडल या सतह के एल्बीडो को तकनीक के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है, जिसमें सोलर ब्राईटनिंग और सौर जियो-इंजीनियरिंग प्रमुख हैं।
  • कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन में वनीकरण के अतिरिक्त उन कृषि पद्धतियों को शामिल किया जाता है, जो कार्बन कैप्चर और भंडारण के रूप में मिट्टी से कार्बन को पृथक कर वायुमंडल से CO2 को कम करती हैं। महासागर उर्वरीकरण (Ocean fertilization) इसमें प्रमुख है।
  • मौसम संशोधन के अंतर्गत कृत्रिम बारिश, मेघ-बीजन या क्लाउड सीडिंग के द्वारा संघनन या बर्फ के नाभिक के रूप में कार्य करने वाले पदार्थों को फैलाकर और इन्हें सूक्ष्म आकाशीय प्रक्रियाओं में परिवर्तित करके वर्षण की मात्रा या प्रकार में बदलाव लाया जाता है।
  • सौर ऊर्जा के सामान्य स्तर पर पृथ्वी तक पहुँचने और परावर्तित होने से ऊष्मा-बजट संतुलित रहता है, जिससे पृथ्वी पर जीवन के लिये उचित परिस्थितयों का निर्माण होता है। लेकिन स्ट्रैटोस्फेरिक सल्फ़ेट एयरोसोल के अधिक उपयोग के कारण ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं, जिससे निपटने के लिये पर्यावरणविद जलवायु इंजीनियरिंग पर काम कर रहे हैं।
Have any questions?

Our support team will be happy to assist you!

call us

+91-9555 124 124
OR