ग्लेशियल झीलों का निर्माण मुख्यतः अधिक ऊँचाई वाले ग्लेशियर बेसिन में हिमनद, मोरेन या प्राकृतिक अवसाद के चलते जल बहाव में अवरोध उत्पन्न होने के कारण होता है। मोरेन के कारण स्थलाकृतिक गर्त का निर्माण होता है, जिसमें हिमनदों के पिघलने से जल इकट्ठा होने लगता है, परिणामस्वरूप ग्लेशियल झील का निर्माण होता है।
झील के स्तर में अतिप्रवाह न होने तक हिमनद से जल का रिसाव झील में होता रहता है। वैश्विक ऊष्मन के कारण जब हिमनदों के पिघलने का आवेग अस्थिर हो जाता हैतथा बड़ी मात्रा में झीलों की ओर जल का बहाव होने लगता है तो झीलों में संगृहीत जल अचानक ‘आउटबर्स्ट’ हो जाता है तथा ‘फ्लैश फ्लड’ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसे 'ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड' के रूप में जाना जाता है। ऐसी घटनाएँ भूस्खलन के कारण अल्पाइन क्षेत्रों में अधिक देखी जाती हैं।
विश्व भर में होने वाली विनाशकारी घटनाओं के लिये हिमनदों या मोराइन बांधों की विफलता को प्रमुख कारण माना जाता है। कम समयांतराल में बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने के कारण इन बहाव क्षेत्रों में बाढ़ की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। वर्षा की तीव्रता, भूस्खलन तथा झीलों व अन्य जल निकायों की भौतिक स्थितियों के बारे में अपर्याप्त आँकड़ों के कारण इनके परिणाम अप्रत्याशित रूप से विनाशकारी होते हैं।
हाल ही में, उत्तराखंड के चमोली ज़िले में नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (NTPC) तपोवन विष्णुगढ़ विद्युत परियोजना तथा ऋषि गंगा पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड परियोजना, ग्लेशियर आउटबर्स्ट के कारण आई फ़्लैश फ्लड से क्षतिग्रस्त हो गई हैं, इन परियोजनाओं से क्रमशः 520 तथा 13.2 मेगावाट विद्युत का उत्पादन किया जाता है।