आधुनिक आणविक प्रौद्योगिकियों (Molecular Technologies) का उपयोग कर जीवों के जीनोम में विशिष्ट परिवर्तन करना ‘इच्छित जीनोमिक परिवर्तन’ कहलाता है। इसे सामान्यतः जीनोम एडिटिंग या जेनेटिक इंजीनियरिंग के रूप में जाना जाता है। हालाँकि, इच्छित जीनोमिक परिवर्तन के लिये अन्य प्रौद्योगिकियों का भी उपयोग किया जा सकता है।
किसी जंतु के डी.एन.ए. अनुक्रम में इस तरह का बदलाव अनुसंधान उद्देश्यों, मानव उपभोग के लिये स्वस्थ माँस के उत्पादन तथा जानवरों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का अध्ययन करने के लिये किया जाता है। इसका उपयोग जानवरों को कैंसर जैसे रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील बनाने तथा शोधकर्ताओं को इस बीमारी की बेहतर समझ व नए उपचार विकसित करने में मदद करता है।
किसी जंतु की संरचना और कार्यशैली में परिवर्तन करने के लिये उसमे जीनोमिक परिवर्तन किया जाता है। 'फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन' (FDA) यह निर्धारित करता है कि आई.जी.ए. और बिना आई.जी.ए. वाले जंतुओं में मूल अंतर यह है कि आई.जी.ए. वाले जंतुओं में तीव्र वृद्धि अथवा प्रतिरोध जैसे नए लक्षण परिलक्षित होते हैं। एफ.डी.ए. सुनिश्चित करता है कि किया गया परिवर्तन जानवरों तथा उनसे प्राप्त उत्पाद का उपभोग करने वाले व्यक्तियों के लिये सुरक्षित हो।
हाल ही में, एफ.डी.ए. ने स्तनधारियों में पाई जाने वाली अल्फा-गैल सुगर (alpha-gal-sugar) को समाप्त करने के लिये गलसेफ सूअरों (GalSafe Pigs) में आई.जी.ए. की अनुमति दी है। अल्फा-गैल सुगर का उपयोग जब दवाइयों या भोजन जैसे उत्पादों के लिये किया जाता है, तो यह लोगों में अल्फा-गैल सिंड्रोम (AGS) के रूप में गंभीर एलर्जी का कारण बनती है।