• हाल ही में, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा तवांग में हस्तनिर्मित काग़ज़ 'मोनपा' की एक नई इकाई शुरू की गई है। इसका उद्देश्य हस्तनिर्मित काग़ज़ कला को पुनर्जीवित करना है। अरुणाचल प्रदेश की ‘मोनपा’ कला लगभग विलुप्त हो गई थी, के.वी.आई.सी. की प्रतिबद्धता से यह पुनर्जीवित हो गई है।
• मोनपा काग़ज़ निर्माण कला लगभग 1000 वर्ष पुरानी है। यह अरुणाचल प्रदेश के तवांग ज़िले में स्थानीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गई थी, क्योंकि स्थानीय लोगों के लिये आजीविका का एक प्रमुख स्रोत थी।
• उत्कृष्ट बनावट वाले इस हस्तनिर्मित काग़ज़ को स्थानीय बोली में ‘मोन शुगु’ कहा जाता है। यह हस्तनिर्मित काग़ज़ ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका प्रयोग बौद्ध मठों में धर्मग्रंथों और स्तुतिगान लिखने के लिये किया जाता है।
• यह काग़ज़ ‘शुगा शेंग’ नामक स्थानीय पेड़ की छाल से बनाया जाता है, जो अपने औषधीय गुणों के लिये प्रसिद्ध है। स्थानीय रूप से उपलब्ध होने के कारण काग़ज़ निर्माण के लिये कच्चे माल की समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
• पूर्व में, इन कागज़ों को तिब्बत, भूटान, थाईलैंड और जापान जैसे देशों को निर्यात किया जाता था, किंतु धीरे-धीरे स्थानीय उद्योग में गिरावट के कारण इसका स्थान निम्न-स्तरीय चीनी कागज़ ने ले लिया। विदित है कि तवांग को हस्तनिर्मित मिट्टी के बर्तन और फर्नीचर के लिये भी जाना जाता है, जो समय के साथ विलुप्त हो रहे हैं।
Our support team will be happy to assist you!
call us