हाल ही में, नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र को लेकर ईसाई बहुल आर्मीनिया और मुस्लिम बहुल अज़रबैजान के बीच पुनः हिंसक संघर्ष शुरू हो गया है। ध्यातव्य है कि विगत चार दशकों से भी ज़्यादा समय से मध्य एशिया में दक्षिणी कॉकेशस क्षेत्र में स्थित इन दो देशों के बीच क्षेत्रीय विवाद और जातीय संघर्ष चल रहा है, जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास अत्यधिक प्रभावित हुआ है।
नागोर्नो-काराबाख़ मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी अज़रबैजान में लगभग 4,400 वर्ग किमी. में फैला एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो आर्मीनिया की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से मात्र 50 किमी. दूर स्थित है। यहाँ आर्मीनिया समर्थित कुछ क्षेत्रीय अलगाववादी सैन्य समूहों का कब्ज़ा है।
ध्यातव्य है कि इन दोनों देशों के बीच विवाद की शुरुआत सोवियत संघ से स्वतंत्र होने के बाद लगभग वर्ष 1918 में हुई थी। नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र में आर्मीनियाई मूल के लोगों की अधिकता होने के बावजूद सोवियत सरकार ने इसे अज़रबैजान का एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर दिया था, लेकिन सोवियत शासन के प्रभुत्व की वजह से उस समय संघर्ष की नौबत नहीं आई।
सोवियत शासन के कमज़ोर होने के साथ ही 90 के दशक में नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र की विधायिका ने अर्मेनिया में शामिल होने का प्रस्ताव पारित किया और वर्ष 1991 में जनमत संग्रह के माध्यम से खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
अज़रबैजान ने कभी भी इस फैसले को नहीं माना और तब से दोनों देशों के बीच अनवरत हिंसक झड़प शुरू हो गई जो समय के साथ बढ़ती गई। वर्ष 1994 में संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बावजूद संघर्ष नहीं रुका। वर्ष 2016 में यह हिंसक संघर्ष बहुत तेज़ हो गया था जिसे फोर-डे वॉर (Four-Day War) के रूप में भी जाना जाता है।