‘राइट-टू-रिपेयर’ आंदोलन के माध्यम से विश्व भर के कार्यकर्ता एवं संगठन उपभोक्ताओं को उनके इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों की मरम्मत करने में सक्षम होने के अधिकार की वकालत करते रहे हैं। इस आंदोलन का प्रारंभ 1950 के दशक में कंप्यूटर युग की शुरुआत के बाद हुआ था।
इसका लक्ष्य कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं तथा मरम्मत करने वाले अन्य लोगों को इलेक्ट्रॉनिक्स तथा अन्य उत्पादों के स्पेयर पार्ट्स, उपकरणों तथा इनको ठीक करने से संबंधित आवश्यक जानकारी उपलब्ध करवाना है।
वैश्विक कार्यकर्ताओं का तर्क है कि इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद निर्माताओं द्वारा ‘एक नियोजित अप्रचलन’ (Planned Obsolescence) संस्कृति को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके तहत उपकरणों को सीमित समय तक कार्य करने तथा प्रतिस्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है। इससे पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव पड़ने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय होता है।
एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न तथा टेस्ला जैसी दिग्गज प्रौधौगिकी कंपनियाँ मरम्मत के अधिकार का विरोध करती रही हैं। उनका मत है कि अपनी बौद्धिक संपदा उपभोक्ताओं या शौकिया मरम्मत करने वाले किसी तीसरे पक्ष को प्रदान करने से उनका शोषण हो सकता है तथा उनके उपकरणों की विश्वसनीयता व सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके माध्यम से संघीय व्यापार आयोग से निर्माताओं द्वारा लगाए गए उन प्रतिबंधों को हटाने के लिये कहा गया है, जो उपभोक्ताओं को अपने उपलब्ध उपकरणों की मरम्मत करने से रोकते हैं। यू.के. में भी मरम्मत के अधिकार से संबंधित नियम पेश किये गये हैं।