यह परजीवी फाइटोप्लाज्मा के कारण चंदन के वृक्ष में होने वाला रोग है।
सर्वप्रथम यह रोग वर्ष 1899 में कर्नाटक के कोडागु के चंदन वृक्षों में देखा गया था। इस रोग के कारण प्रतिवर्ष 1 से 5% चंदन वृक्ष नष्ट हो जाते हैं।
इस रोग के विनाशकारी प्रभाव के परिणामस्वरूप वर्ष 1998 में प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) द्वारा चंदन वृक्ष को ‘सुभेद्य’ के रूप में वर्गीकृत किया गया।
वर्तमान में इस रोग के प्रसार पर नियंत्रण के लिये संक्रमित वृक्षों को काटने के अतिरिक्त कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है