भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के सहयोग से आई.आई.टी. कानपुर के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में इस बात का पता लगाया है कि हिमालयी हिमनदों के जलग्रहण की उपग्रह-आधारित निगरानी से बाढ़ के खतरे से न सिर्फ बचा जा सकता है, बल्कि इसके लिये पूर्व-चेतावनी प्रणाली भी विकसित की जा सकती है।
हिमालय, जिसे पृथ्वी का तीसरा ध्रुव कहा जाता है, यह ध्रुवीय क्षेत्रों से इतर पृथ्वी पर सर्वाधिक हिम उपस्थिति वाला क्षेत्र है। जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के पिघलने की दर में तेज़ी से वृद्धि हुई है, इसके चलते हिमालय क्षेत्र में नई झीलें बन रही हैं और पहले से विद्यमान झीलों का आकार बढ़ रहा है।
जटिल भौतिक परिदृश्य तथा मोबाइल नेटवर्क की समुचित अनुपस्थिति के चलते हिमालय क्षेत्र में बाढ़ के संबंध में पूर्व-चेतावनी प्रणाली का विकास लगभग असंभव कार्य है। अतः उपग्रह-आधारित निगरानी से भविष्य में बाढ़ संबंधी आपदाओं से होने वाली क्षति से बचा जा सकता है।
अध्ययन दल ने सुझाव दिया है कि हिमालय क्षेत्र में हिमनदीय प्रस्फुटन जैसी घटनाओं के प्रतिकूल प्रभावों को न्यूनतम करने के लिये क्षेत्र में उपग्रह-आधारित निगरानी स्टेशन्स के नेटवर्क को विकसित करना होगा।