• ग्लोबल जियोपार्क, ऐसे अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत भू-वैज्ञानिक क्षेत्र होते हैं, जिनकी सुरक्षा, उससे जुड़ी जानकारियों और क्षेत्र के सतत विकास का प्रबंधन यूनेस्को द्वारा किया जाता है। इन पार्कों की स्थापना की प्रक्रिया प्राथमिक स्तर से शुरू होती है, जिसमें सभी पात्र स्थानीय क्षेत्रों को शामिल किया जाता है। इसमें स्थानीय समुदायों के साथ जुड़कर पृथ्वी की भू-विविधता की सुरक्षा और सतत विकास को बढ़ावा दिया जाता है।
• यूनेस्को ने वर्ष 2001 से जियोपार्कों पर कार्य करना शुरू किया। ग्लोबल जियोपार्क टैग के लिये एक समर्पित वेबसाइट, क्षेत्र की कॉर्पोरेट पहचान तथा क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक प्रबंधन योजना का होना आवश्यक है। इस टैग से न सिर्फ नए स्थानीय उद्योगों, नौकरियों और इससे जुड़े प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की रूपरेखा तैयार होती है, बल्कि भू-पर्यटन के द्वारा राजस्व के नए स्रोत भी उत्पन्न होते हैं।
• अभी तक यूनेस्को द्वारा लगभग 44 देशों के 161 क्षेत्रों को 'यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क’ का दर्जा दिया गया है लेकिन भारत का एक भी भू-वैज्ञानिक क्षेत्र अभी तक इस सूची में जगह नहीं बना पाया है। यूनेस्को, ग्लोबल जियोपार्क के अलावा विश्व विरासत स्थल और बायोस्फियर रिज़र्व (मैन एंड बायोस्फियर प्रोग्राम के तहत) के रूप में सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्त्व के स्थलों की सूची भी जारी करता है।
• ध्यातव्य है कि भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास (INTACH), आंध्र प्रदेश में स्थित एर्रा मट्टी डिब्बालू (लाल रेत के टीले), बोर्रा गुफाओं एवं अन्य प्राकृतिक चट्टानी संरचनाओं के लिये ‘ग्लोबल जियोपार्क’ टैग के लिये प्रयासरत है। पूर्व में लोनार झील, सेंट मैरी द्वीप आदि यह टैग पाने के निकट पहुँचे थे किंतु उन्हें किन्हीं कारणों से यह प्राप्त नहीं हो सका था।
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