• जैव ऊर्जा फसलों का तात्पर्य ऐसी फसल से है, जिसे अपना जीवन चक्र पूरा करने में एक वर्ष से अधिक समय लगता है। इनका उपयोग जैव ईंधन के उत्पादन में किया जाता है। इनमें गेहूँ, मक्का, तिलहन, गन्ना, नीलगिरी, चिनार, विलो, मिसकैंथस और स्विचग्रास आदि फसलें शामिल हैं।
• एक नए अध्ययन के अनुसार, वार्षिक फसलों के स्थान पर बारहमासी जैव ऊर्जा फसलों की खेती किये जाने से उन क्षेत्रों में शीतलन प्रभाव उत्पन्न हो सकता है। बड़े पैमाने पर जैव-ऊर्जा फसल की खेती वैश्विक स्तर पर जैवभौतिक शीतलन प्रभाव को प्रेरित करती है, किंतु वायु के तापमान में परिवर्तन में मजबूत स्थानिक भिन्नताएँ और अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता होती है।
• यूरेशिया में 60°N और 80°N के बीच मजबूत शीतलन प्रभाव, पर्माफ्रॉस्ट को पिघलने से बचा सकता है या आर्द्रभूमि से मीथेन उत्सर्जन को कम कर सकता है। अर्थात इससे वैश्विक तापन को कम करने में मदद मिल सकती है।
• जैव ऊर्जा फसल के जैव-भौतिक प्रभाव न केवल वैश्विक तापमान को परिवर्तित करते हैं, बल्कि प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैस प्रवाह पर द्वितीयक प्रभाव भी उत्पन्न करते हैं, जिसे बड़े पैमाने पर कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के साथ जैव ऊर्जा परिनियोजन में ध्यान रखा जाना चाहिए।
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